कल सुबह जब उठो तो सुनहरी धूप की गर्मी में कुछ पल नहाना
नमी में डूबे गीले पत्तों को सहलाना
नए दिन की शुरुआत का गीत गाते परिंदों को सुनना
बदल रहे मौसम के इशारे समझना
गर्म दिनों में सुबह की मंद शीतल पवन से अंतर्मन को पुलकित करना
पतझड़ हो तो गिर रहे पत्तों की बारिश में कुछ पल खो जाना
शिशिर ऋतु की ठंडी बर्फ से देह और मन को चकित करना
वसन्त में नन्हे पौधों से थोड़ी बातें करना।.....
जानती हूँ तुम्हारे सपनों की तालिका बहुत लंबी है
बहुत दूर तक जाना चाहते हो
सितारे छूना चाहते हो
पर उन सितारों को देखने वाला भी तो कोई होना चाहिए
वो ऊपर आसमान में टिमटिमाते चाँद और तारे यूँ ही तो नहीं बने
अस्पष्ट अँधेरी रातों में जाने कितनों को राह दिखाते हैं
अपने अस्तित्व को सार्थक बनाते हैं।
अकेले भागते रहे तो कभी थकोगे भी, कभी गिरोगे भी
कोशिश करना कि कोई हो जो तुम्हे थाम ले, उन पलों में संभाल ले
तुम्हे टूटने से पहले समेट ले, तुम्हे बिखरने से पहले बटोर ले
तुम्हे याद दिलाये फिर से मुस्कुराना
कुछ पल ठहरना
फिर से चहकना
फिर से खिलखिलाना
सपनों की वजह से पीछे छूट रही ज़िन्दगी को
फिर से थामना
फिसलते जा रहे ख़ुशी के लम्हों को
संजोना
याद रखना कि सपने कुछ पूरे होंगे
कुछ अधूरे रह जाएंगे
पर ज़िन्दगी के गुज़रते लम्हे फिर वापस नहीं आएँगे।
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Linking to Write Tribe's #FridayReflections prompt
“It does not do to dwell on dreams and forget to live.” – J K Rowling, Harry Potter and the Philosopher’s Stone. Use this quote in your post or as an inspiration for one.