कुछ रेत के घर बनाना
एक छोटा सा महल भी होगा
जिसमें कहीं मेरा निशाँ भी होगा
जब लहरें शोर मचाएंगी
इठलाती हुई पास आएंगी
सब कुछ ढह जाते देखना
मुझे फिर मर जाते देखना
लड़ तो तुम नहीं पाओगे
लहरों से क्या टकराओगे
खुद भी तो रेत से बने हो तुम
एक दिन तुम भी बह जाओगे
यही तो किया तुमने
कमज़ोर दीवारों से घिरे
निरर्थक व्यवहारों से पले
उठा न पाये सर कभी
झुके खड़े हो आज भी
सुन न सके उन तरंगों की धुन
नई सोच से नए सपने काश बुन देते तुम
मेरे पिता बन जाते तुम
कुछ गुड़िया भी घर में लाते तुम
पर सोच तुम्हारी काँटा बन
पैरों में मेरे चुभ रही है आज
मैं जाती हूँ अब तुमसे दूर
नहीं मुझे अब तुमपे नाज़ ...."
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कल रात नहीं फिर सो मैं पाया
सपने ने जैसे मुझे जगाया
आइना मुझको दिखलाया
एक कमज़ोर शख्स से मिलवाया
पिता हूँ कैसा मैं
जो आती मेरे जीवन में
मुझको भी जीना सिखलाती
कुछ रंग गुलाबी बिखरा कर
मेरे कुंठित काले मन को
नित नया रूप वो दे जाती
निर्जीव खड़ा मैं गुनहगार
कल सुबह वहीँ पे जाऊँगा
लहरों से न मैं लड़ पाऊँ
मैं फिर भी महल बनाऊंगा
एक घेरा ऐसा डालूँगा
जो अनुचित दूषित सोच को
दरवाज़े से बाहर रखेगा
तू आना मेरे घर बेटी
इस घर को खूब सजाना तू