जीवन स्मृतियों के एक चलचित्र के समान है. कभी खुली तो कभी बंद आँखों से इस चलचित्र पर अनगिनत छवियाँ अपनी छाप छोड़ जाती हैं। विभिन्न पात्र आते हैं, और हर पृष्ठ पर कुछ स्मृतियाँ बनती जाती हैं। कोई मासूम सी मुस्कुराहट, कोई दर्द भरा संगीत , किसी साज़ की कोई मधुर ध्वनि , किसी का छल , किसी का प्रेम , कोई स्नेह भरा स्पर्श , और कभी कभी कोई अजनबी - अनूठी असंख्य स्मृतियाँ जिन्हे हम ज़िन्दगी कहते हैं। हर स्मृति को देखने का एक दृष्टिकोण होता है और वही दृष्टिकोण हमारे विचारों को परिभाषा देता है।
नववर्ष के हर्षोउल्लास के मध्य ऐसे ही एक स्मृति मेरी आँखों के सामने आ गयी - गुज़रा वर्ष अनगिनत यादों से भरा था, फिर भी न जाने क्यों वह चित्र एक बार फिर स्मरण हुआ और मुझे लिखने के लिए प्रेरित कर गया।
कुछ महीने पहले जब मैं छुट्टियों में इंडिया गयी थी, वहीं का चित्र है यह - इसमें न कोई झरना बह रहा है , न कोई हरी वादियां हैं, न कोई मन मोहने वाले घने पेड़ हैं। है तो बस एक गुब्बारे-वाला , और उसकी छोटी सी बेटी । दोनों बाजार में दिन ढलने के बाद एक आखिरी गुब्बारा बिकने के इंतज़ार में खड़े हैं।
गुब्बारे भी एक निराला आविष्कार हैं। कोई भी पर्व हो, जश्न हो, इनकी उपस्थिति पूरे माहौल को अलंकृत कर देती है। कौन जानता था कि जो वस्तु सेना में संकेत या चेतावनी के लिए बनी थी, उसका स्वरूप और उद्देश्य खुशियों के पल में किया जाने लगेगा।
रंग-बिरंगे गुब्बारे, भिन्न रूपों में ,अनगिनत आकारों में बंधे, छोटे बच्चों को हँसाते हैं। कोई गुब्बारा हाथ से छूट कर दूर निकल जाता है तो कोई हाथों से फट कर अपना अस्तित्व खोते हुए भी, ठहाकों का फव्वारा छोड़ जाता है।
कल जब वह गुब्बारे वाला याद आया, तो मन सोचने पर विवश हो गया की जो गुब्बारे ऊंचे ऊंचे घरों के किसी कोने में बस यूं ही अपना दम तोड़ देते हैं, वही गुब्बारे किसी के जीने का एकमात्र साधन भी होते हैं। उस शाम वह गुब्बारे वाला क्या अपना आखिरी गुब्बारा बेच रहा था, या अपने या अपनी बेटी के लिए कोई सपना खरीद रहा था ? क्या उसकी बेटी का मन नहीं मचला होगा गुब्बारे से खेलने के लिए ? उसके बचपन की चंचलता और हठ कहाँ थी ? न जाने उस डंडी से उतरने के बाद वह गुब्बारा कहीं उड़ जाने वाला था, या किसी शैतान बच्चे की बदमाशी का शिकार बनने वाला था। न जाने उस एक गुब्बारे में कितने पलों का सब्र, कितनी आशा छिपी थी। मैं रुक तो नहीं पायी यह देखने के लिए, पर कल्पना के पंख लगा के बस सोचती रही कि गुब्बारे वाले पापा ने अपनी बेटी के लिए जो सपने बुने होंगे, काश वो सपने सच हो जाएं।
गुब्बारे - जब हवा में उड़ते हुए खुले आसमान में आज़ादी का अनुभव करते हैं , तो क्या वह किसी के सपनों के सच होने का प्रतीक होते हैं ? जब वही गुब्बारे किसी के हाथ से फट जाते हैं , तो क्या वह भी किसी के सपने टूटने का संकेत देते हैं?
क्या वह आखिरी गुब्बारा डंडी से उतर कर खुले गगन में पंछी की तरह स्वछंद हो , गुब्बारे वाले पापा को कुछ पलों के लिए ही सही , कुछ आर्थिक स्वतंत्रता दे गया होगा ? कौन जाने ?
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नववर्ष के हर्षोउल्लास के मध्य ऐसे ही एक स्मृति मेरी आँखों के सामने आ गयी - गुज़रा वर्ष अनगिनत यादों से भरा था, फिर भी न जाने क्यों वह चित्र एक बार फिर स्मरण हुआ और मुझे लिखने के लिए प्रेरित कर गया।
कुछ महीने पहले जब मैं छुट्टियों में इंडिया गयी थी, वहीं का चित्र है यह - इसमें न कोई झरना बह रहा है , न कोई हरी वादियां हैं, न कोई मन मोहने वाले घने पेड़ हैं। है तो बस एक गुब्बारे-वाला , और उसकी छोटी सी बेटी । दोनों बाजार में दिन ढलने के बाद एक आखिरी गुब्बारा बिकने के इंतज़ार में खड़े हैं।
गुब्बारे भी एक निराला आविष्कार हैं। कोई भी पर्व हो, जश्न हो, इनकी उपस्थिति पूरे माहौल को अलंकृत कर देती है। कौन जानता था कि जो वस्तु सेना में संकेत या चेतावनी के लिए बनी थी, उसका स्वरूप और उद्देश्य खुशियों के पल में किया जाने लगेगा।
रंग-बिरंगे गुब्बारे, भिन्न रूपों में ,अनगिनत आकारों में बंधे, छोटे बच्चों को हँसाते हैं। कोई गुब्बारा हाथ से छूट कर दूर निकल जाता है तो कोई हाथों से फट कर अपना अस्तित्व खोते हुए भी, ठहाकों का फव्वारा छोड़ जाता है।
कल जब वह गुब्बारे वाला याद आया, तो मन सोचने पर विवश हो गया की जो गुब्बारे ऊंचे ऊंचे घरों के किसी कोने में बस यूं ही अपना दम तोड़ देते हैं, वही गुब्बारे किसी के जीने का एकमात्र साधन भी होते हैं। उस शाम वह गुब्बारे वाला क्या अपना आखिरी गुब्बारा बेच रहा था, या अपने या अपनी बेटी के लिए कोई सपना खरीद रहा था ? क्या उसकी बेटी का मन नहीं मचला होगा गुब्बारे से खेलने के लिए ? उसके बचपन की चंचलता और हठ कहाँ थी ? न जाने उस डंडी से उतरने के बाद वह गुब्बारा कहीं उड़ जाने वाला था, या किसी शैतान बच्चे की बदमाशी का शिकार बनने वाला था। न जाने उस एक गुब्बारे में कितने पलों का सब्र, कितनी आशा छिपी थी। मैं रुक तो नहीं पायी यह देखने के लिए, पर कल्पना के पंख लगा के बस सोचती रही कि गुब्बारे वाले पापा ने अपनी बेटी के लिए जो सपने बुने होंगे, काश वो सपने सच हो जाएं।
गुब्बारे - जब हवा में उड़ते हुए खुले आसमान में आज़ादी का अनुभव करते हैं , तो क्या वह किसी के सपनों के सच होने का प्रतीक होते हैं ? जब वही गुब्बारे किसी के हाथ से फट जाते हैं , तो क्या वह भी किसी के सपने टूटने का संकेत देते हैं?
क्या वह आखिरी गुब्बारा डंडी से उतर कर खुले गगन में पंछी की तरह स्वछंद हो , गुब्बारे वाले पापा को कुछ पलों के लिए ही सही , कुछ आर्थिक स्वतंत्रता दे गया होगा ? कौन जाने ?
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commendable
ReplyDeleteThanks Ila ji.
DeleteA well-laid post!
ReplyDeleteThanks Maitreni.
Deletebeautifully put dearie :-)
ReplyDeletethanks Archana...:)
Deletegahan vichaar...sundar prastuti!
ReplyDeleteI am honored...!
DeleteI love the way you empathize. Gubbarawala reminds me of Tagore's Kabuliwaala. You're a great writer, Sunaina. Your Hindi is also damn good. :)
ReplyDeleteI agree with Ravish. Your hindi is damn good, Sunaina. And yes, it reminds me of Kabuliwala story. Few images leave an indelible impression. Balloons are a part of every festivity in India, all thanks to street hawkers. Loved the last line and the profoundness in it.
DeleteThanks Ravish. I haven't read the story but I am flattered. I have to read it to learn more. Hindi is something I am struggling with, to tell you the truth. When I read amazing pieces written in Hindi, I am speechless. I wish to improve my command over my mother tongue so that I can express myself more lucidly.
DeleteThanks Saru for your valuable comment. I have to read the story for sure. Posts that are really close to my heart actually reach those who read them. I am so delighted.
Deleteसही सोच को व्यक्त करती सुन्दर पोस्ट !!
ReplyDeleteThank you so much Yogi.
DeleteBeautiful musings of a beautiful writer!And your hindi is perfect..A pleasure to read :)
ReplyDeleteThanks Kokila.
Deleteअति सुन्दर. बहुत ही उम्दा. वापिस आता रहूँगा आपके ब्लॉग पर!!!
ReplyDeleteReally?!!! That is very encouraging indeed. Thank you so much Himanshu.
DeleteVery symbolic and I enjoyed reading good Hindi after a long time.
ReplyDeleteThat definitely is a great compliment Chaitali.
DeleteYour post tells me that you are a sensitive being. Keep it this way. That's what makes us human.
ReplyDeleteThanks for the thoughtful words Saket.
DeleteGubbaron ka aazadi se udana aur sapno ka sach hona.
ReplyDeleteGubbaron ka phootna aur sapno ka tootna...bahut khoobsurat tulna hai.
thanks Somali...:)
DeleteVry well written di.
ReplyDeleteThanks Tanu Bhabhi....:)
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